जगत के खिवैया राम सिया मैया लिरिक्स
जब केवट ने देखा श्री राम बनवास जाने के लिए उनकी नाव में,
आ रहे है तो केवट की प्रसन्ता का ठिकाना नही रहा और उसने सोचा…
जगत के खिवैया राम सिया मैया,
आन विराजे आज केवट की नैया,
जो सब को पार करे, राम सिया मैया,
धन्य भाग केवट के, बने जो खिवैया,
जगत के खिवैया…
नैया पर जब राम जी पधारे,
केवट ने पहले पाँव पखारे,
पाँव क्यों पाखरे, क्या केवट की मनसा,
केवट ने दूर की राम की शंसा,
राम ने पत्थर को पैर क्या लगाया,
उसे सुन्दर सी महिला बनाया,
नाव नार वन गई, सौत घर में आ गई,
एक नार से मेरा घर उजियारा,
दूजी अगर आई तो हो जैहे अँधियारा
राम अपने बाप की बात याद कर लो,
एक नही दो नहीं तीन महतारी,
जिनने राम घर से निकारी,
एक अगर होती राम आपकी महतारी,
क्यों देती आपको घर से निकारी,
सशय करो न मेरे राम सिया मैया,
जगत के खिवैया…
इस तरह केवट ने रामको बैठाया,
और निदयां के उस पार कराया,
सिया ने उतर के देना चाही उतराई,
मुस्कुराके सिया ने मुद्रिका दिखाई,
बोले केवट कैसे लेले उतराई,
सबको पर लगाते राम रघुराई,
फिर हम दोनो की जात एक कहलाई,
अगर माई देना चाहती हो उतराई,
तो वापिस इस घाट, लेना मेरी नैया,
जगत के खिवैया…
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